मेरे भारत की दशा देखो ।
पेट भूखा, नंगा तन देखो ॥
चोरी, भ्रष्टाचार में डूबे ।
है विदेशो में तुम धन देखो ॥
हर कही उजडी है आजादी ।
चोतरफ से उखडा मन देखो ॥
भेडिये बसते है इंसा में ।
लगता है अब देश वन देखो ॥
पैसा ही पहेचान है यारो ।
प्यार से बढकर धन देखो ॥
“सखी”
दर्शिता बाबुभाइ शाह
२२-६-२०१२