लोकप्रिय पोस्ट

शनिवार, 4 अगस्त 2012

जिंदगी


जिंदगी का सफर पूरा करने में तलवार की धार पर चल रहा हुं ।
हाल दिलका सुनाने के वास्ते में दीवार की धार पर चल रहा हुं ।।

हाय उनकी हस्त रेखा में मेरा ही भाग्य क्युं केद है सोचता हुं ।
जब कभी जाना तो बीच सहरे में मझधार की धार पर चल रहा हुं ।।

राह कांटो भरी और खूं में डुबे पांव, आंखोमे घेरी उदासी ।
गुमसुदा यू तडफडाते लोगो की तकरार की धार पर चल रहा हुं ।।

ताजगी, खुश्बु, चांदनी चाहो तो प्रकृति के इस रंगो में डूबो ।
सार संसार का समजाने युग से संसार की धार पर चल रहा हुं ।।

रोते है पैरोंके छाले किसमत पर, सावन के घनधोर बादल हो जैसे ।
आज कल उनसे इकरार करवाने इनकार की धार पर चल रहा हुं ।।

भ्रष्ट सरकार के विरुध्ध लोगोमें जो असंतोष है उस पर बोला ।
मुँह से चार अलफास क्या निकले अखबार की धार पर चल रहा हुं ।।

सर्दीकी कांपती रातोमें आँखोके जालोसे छन कर आता है प्रकाश ।
बंध आंखो के भीतर उभरते हुए आकार की धार पर चल रहा हुं ।।

३-८-२०१२