जिंदगी का सफर पूरा करने में तलवार की
धार पर चल रहा हुं ।
हाल दिलका सुनाने के वास्ते में दीवार
की धार पर चल रहा हुं ।।
हाय उनकी हस्त रेखा में मेरा ही भाग्य
क्युं केद है सोचता हुं ।
जब कभी जाना तो बीच सहरे में मझधार की
धार पर चल रहा हुं ।।
राह कांटो भरी और खूं में डुबे पांव,
आंखोमे घेरी उदासी ।
गुमसुदा यू तडफडाते लोगो की तकरार की
धार पर चल रहा हुं ।।
ताजगी, खुश्बु, चांदनी चाहो तो प्रकृति
के इस रंगो में डूबो ।
सार संसार का समजाने युग से संसार की
धार पर चल रहा हुं ।।
रोते है पैरोंके छाले किसमत पर, सावन के
घनधोर बादल हो जैसे ।
आज कल उनसे इकरार करवाने इनकार की धार
पर चल रहा हुं ।।
भ्रष्ट सरकार के विरुध्ध लोगोमें जो
असंतोष है उस पर बोला ।
मुँह से चार अलफास क्या निकले अखबार की
धार पर चल रहा हुं ।।
सर्दीकी कांपती रातोमें आँखोके जालोसे
छन कर आता है प्रकाश ।
बंध आंखो के भीतर उभरते हुए आकार की धार
पर चल रहा हुं ।।
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