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शुक्रवार, 29 जून 2012

भारत



मेरे भारत की दशा देखो ।
पेट भूखा, नंगा तन देखो ॥

चोरी, भ्रष्टाचार में डूबे ।
है विदेशो में तुम धन देखो ॥

हर कही उजडी है आजादी ।
चोतरफ से उखडा मन देखो ॥

भेडिये बसते है इंसा में ।
लगता है अब देश वन देखो ॥

पैसा ही पहेचान है यारो ।
प्यार से बढकर धन देखो ॥
“सखी”       
दर्शिता बाबुभाइ शाह 

२२-६-२०१२                    
        

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