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बुधवार, 4 अगस्त 2010

मंजर

उदास रातका मंजर बदल भी सकता है ।
नए लिबास में सूरज निकल भी सकता है ।।

बर्क गीरी हे रहगुजर पे जहां देखो ।
तूटा हुआ दिल संभल भी सकता है ।।

छलकते हे जाम मस्तीभरी आंखोसे ।
ऐसे में दिल मचल भी सकता है ।।

पैमाने भरे हे मय से मयखाने खाली ।
तश्नालब मस्ती से उछल भी सकता है ।।

सुरुर इस तरह छाया हे इश्क का।
पथ्थर दिल पिघल भी सकता है ।।

१३-१२-२००६

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