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गुरुवार, 7 फ़रवरी 2008

आह !

एक ऐसी भी सूरत होती है।
मुस्कराहट भी आह होती है॥

नजरों के सामने होते हुए भी।
मुलाक़ात भी चाह होती है॥

ढूंढ़ते रहते है जाने क्या।
दिल को किसकी राह होती है॥

जफा करने वाले जहाँ में क्यूँ।
आज तेरी वाह वाह होती है॥

सखी वक्त का ये तकाजा है।
दिल को दिल से डाह होती है॥

दर्शिता "सखी" .......