छांव में धूप को तरसुं ।
बूढा हुं रुप को तरसुं ॥
है मन पर बोझ बड़ा भारी
शिखरों में कूप को तरसुं ॥
कैसा नादां हुं दुनिया में ।
फ़ज़ल के सूप को तरसुं ॥
कृपा
१८-२-२०१२
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